पूछकर खैरियत मेरी ,
मुझसे वो क्या पूछता है ।
ज़ख्म मेरे दिल के,
निगाहों में मेरी ढूंढता है ।
देकर तोहफ़े ग़म के ,
अश्क़ भी मेरे लुटता है ।
लूटकर वो मुझे ,
खुशियाँ भी मेरी कूटता है ।
बहता चल वक़्त तो धार है ।
हाथ होंसले की पतवार है
रुकना फ़ितरत नही "निश्चल" ,
किनारा नही यह तेरे हाथ है ।
पूछकर वो खैरियत मेरी ..
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
मुझसे वो क्या पूछता है ।
ज़ख्म मेरे दिल के,
निगाहों में मेरी ढूंढता है ।
देकर तोहफ़े ग़म के ,
अश्क़ भी मेरे लुटता है ।
लूटकर वो मुझे ,
खुशियाँ भी मेरी कूटता है ।
बहता चल वक़्त तो धार है ।
हाथ होंसले की पतवार है
रुकना फ़ितरत नही "निश्चल" ,
किनारा नही यह तेरे हाथ है ।
पूछकर वो खैरियत मेरी ..
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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