पहचान बने अपने ही जाने पहचाने से ।
क्या लाभ किसी अंजाने को यार बनाने से ।
गुलशन न महका कागज़ के फूल सजाने से।
प्यास धरा न मिटती बिन मौसम बदली छाने से ।
सूरज छिपता कब लाख छिपाने से ।
प्रभा किरण चल पड़ती भोर मुहाने से ।
पवन न थमी कभी पतझड़ हो जाने से ।
सागर न सूखा अंजुरी जल भर लाने से ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
क्या लाभ किसी अंजाने को यार बनाने से ।
गुलशन न महका कागज़ के फूल सजाने से।
प्यास धरा न मिटती बिन मौसम बदली छाने से ।
सूरज छिपता कब लाख छिपाने से ।
प्रभा किरण चल पड़ती भोर मुहाने से ।
पवन न थमी कभी पतझड़ हो जाने से ।
सागर न सूखा अंजुरी जल भर लाने से ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें