मुसाफ़िर हमसे कहा राह पाते है ।
हम जुगनूं रातों को टिमटिमाते है ।
..
लाभ हानि के खाते , लिखते सब ।
लोग नही मिलते , बे-मतलब अब ।
....
फूल सा जो महकता सा रहा है ।
यूँ वो रिश्ता वा-खूब सा रहा है ।
..
अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने ।
खुद को बा-खूब सजाया उसने ।
....
ज़िन्दगी भी , एक किताब है ।
दो लाइन का, बस हिसाब है ।
...
कुछ लिखें अपना , कुछ कहें अपना।
सत्य नही ज़ीवन , ज़ीवन एक सपना।
...
ज़ीवन की बस , इतनी परिभाषा है।
ज़ीवन तो बस , कटता ही जाता है।
....
पतझड़ नही वसंत हो ज़िंदगी ।
अन्त नही आरम्भ हो ज़िंदगी ।
...
तारा टूटा फ़लक से जमीं नसीब न थी ।
ख़ाक हुआ हवा में मुफ़लिसी केसी थी ।।
...
तपता रहा उम्र भर , कुंदन सा हो गया ।
भाया न दुनियाँ को , खुद भी खो गया ।
..
पथिक थक जाएगा ,मंजिल पा जाएगा ।
छोड़े पद चिन्हों का,इतिहास बनाएगा ।
....
होता रहता है हरदम , कुछ न कुछ।
वक़्त सीखाता है हरदम , बहुत कुछ।
....
यह सफर विकल्प से , संकल्प तक का ।
लगता सारा जीवन , सफर दो पग का।
..
दिए जले जो रातों को ,
खोजते अहसासों को ।
जलाकर अपनी बाती ,
टटोलते अँधियारों को ।
...... विवेक दुबे "निश्चल"@....
हम जुगनूं रातों को टिमटिमाते है ।
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लाभ हानि के खाते , लिखते सब ।
लोग नही मिलते , बे-मतलब अब ।
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फूल सा जो महकता सा रहा है ।
यूँ वो रिश्ता वा-खूब सा रहा है ।
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अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने ।
खुद को बा-खूब सजाया उसने ।
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ज़िन्दगी भी , एक किताब है ।
दो लाइन का, बस हिसाब है ।
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कुछ लिखें अपना , कुछ कहें अपना।
सत्य नही ज़ीवन , ज़ीवन एक सपना।
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ज़ीवन की बस , इतनी परिभाषा है।
ज़ीवन तो बस , कटता ही जाता है।
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पतझड़ नही वसंत हो ज़िंदगी ।
अन्त नही आरम्भ हो ज़िंदगी ।
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तारा टूटा फ़लक से जमीं नसीब न थी ।
ख़ाक हुआ हवा में मुफ़लिसी केसी थी ।।
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तपता रहा उम्र भर , कुंदन सा हो गया ।
भाया न दुनियाँ को , खुद भी खो गया ।
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पथिक थक जाएगा ,मंजिल पा जाएगा ।
छोड़े पद चिन्हों का,इतिहास बनाएगा ।
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होता रहता है हरदम , कुछ न कुछ।
वक़्त सीखाता है हरदम , बहुत कुछ।
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यह सफर विकल्प से , संकल्प तक का ।
लगता सारा जीवन , सफर दो पग का।
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दिए जले जो रातों को ,
खोजते अहसासों को ।
जलाकर अपनी बाती ,
टटोलते अँधियारों को ।
...... विवेक दुबे "निश्चल"@....
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