स्याह मेरे शहर के उजाले हैं ।
रौशनियाँ जिन के हवाले हैं ।
गिर टूटते नही अश्क़ अब तो ,
दर्द जो इस दिल के निकाले है ।
क्या लड़े साहिल से आज वो,
समंदर ही दरिया के निवाले है ।
बेख़ौफ़ नादाँ है नाख़ुदा वो ,
कश्तियाँ तूफ़ां ही सँभाले है ।
मंजिल निग़ाह नही अब तो ,
यह रास्ते ही रखवाले हैं ।
चलता निशां छोड़ अब वो ,
कदमो ने छाले निकाले हैं ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
रौशनियाँ जिन के हवाले हैं ।
गिर टूटते नही अश्क़ अब तो ,
दर्द जो इस दिल के निकाले है ।
क्या लड़े साहिल से आज वो,
समंदर ही दरिया के निवाले है ।
बेख़ौफ़ नादाँ है नाख़ुदा वो ,
कश्तियाँ तूफ़ां ही सँभाले है ।
मंजिल निग़ाह नही अब तो ,
यह रास्ते ही रखवाले हैं ।
चलता निशां छोड़ अब वो ,
कदमो ने छाले निकाले हैं ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
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