गुरुवार, 22 मार्च 2018

यूँ तो खुशियाँ भी साथ थी

यूँ तो खुशियाँ भी साथ थीं ।
 ग़म के साए से निराश थीं ।

 जीतती थीं बार बार मगर ,
 भय से हार के उदास थीं । 

  ओढ़कर रात ख़्वाब सुहाने ,
  ज़िंदगी के आस पास थी ।

  आती चुपके से पास सुबह ,
  साँझ भी जहाँ आस पास थी ।

 लिखकर गीतों में ज़िंदगी अपनी, 
 फिर किसी ग़जल की तलाश थी ।

 जीतता रहा हर हालत को ,
 हार भी तो एक विश्वास थी ।

 चल मुकम्मिल कर सफ़र अपना,
मंज़िल की तुझे भी तो तलाश थी ।
 ..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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