यूँ तो खुशियाँ भी साथ थीं ।
ग़म के साए से निराश थीं ।
जीतती थीं बार बार मगर ,
भय से हार के उदास थीं ।
ओढ़कर रात ख़्वाब सुहाने ,
ज़िंदगी के आस पास थी ।
आती चुपके से पास सुबह ,
साँझ भी जहाँ आस पास थी ।
लिखकर गीतों में ज़िंदगी अपनी,
फिर किसी ग़जल की तलाश थी ।
जीतता रहा हर हालत को ,
हार भी तो एक विश्वास थी ।
चल मुकम्मिल कर सफ़र अपना,
मंज़िल की तुझे भी तो तलाश थी ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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ग़म के साए से निराश थीं ।
जीतती थीं बार बार मगर ,
भय से हार के उदास थीं ।
ओढ़कर रात ख़्वाब सुहाने ,
ज़िंदगी के आस पास थी ।
आती चुपके से पास सुबह ,
साँझ भी जहाँ आस पास थी ।
लिखकर गीतों में ज़िंदगी अपनी,
फिर किसी ग़जल की तलाश थी ।
जीतता रहा हर हालत को ,
हार भी तो एक विश्वास थी ।
चल मुकम्मिल कर सफ़र अपना,
मंज़िल की तुझे भी तो तलाश थी ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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