शब्द हैं पर भाव नहीं ।
बाते हैं पर विचार नहीं ।
घर हैं पर परिवार नहीं ।
अपने हैं पर दुलार नहीं ।
दिल है पर द्वार नहीं ।
देश है पर पहरेदार नहीं ।
इंसानो की इस बस्ती में ,
इंसानियत कही खो गई ।
थक हार कर बेचारी,
कही धूप में ही सो गई ।
.......विवेक दुबे "निश्चल"@....
बाते हैं पर विचार नहीं ।
घर हैं पर परिवार नहीं ।
अपने हैं पर दुलार नहीं ।
दिल है पर द्वार नहीं ।
देश है पर पहरेदार नहीं ।
इंसानो की इस बस्ती में ,
इंसानियत कही खो गई ।
थक हार कर बेचारी,
कही धूप में ही सो गई ।
.......विवेक दुबे "निश्चल"@....
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