राज खुले जो धीरे धीरे ,
चलता नदिया तीरे तीरे ।
छूना चाहे लहरों को ,
हाथ फैले रीते रीते ।
चाह छुअन शीतल जल की,
बुझे मन अंगारों की पीरें।
उन कदमों की आहट से ,
बनतीं हैं कुछ तस्वीरें ।
विम्ब उभरता "निश्चल" जल में ,
झलकीं धुँधली कुछ तस्वीरें ।
कुछ खुशियाँ गैरो सी ,
कुछ अपनी ही पीरें।
गिरे अश्रु कण जल में ,
मिटती सब तस्वीरें ।
चलता नदिया तीरे तीरे,
हाथ फैलाए धीरे धीरे ।
चलना ही नियति जैसे ,
चलता है सँग लिए पीरें ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
चलता नदिया तीरे तीरे ।
छूना चाहे लहरों को ,
हाथ फैले रीते रीते ।
चाह छुअन शीतल जल की,
बुझे मन अंगारों की पीरें।
उन कदमों की आहट से ,
बनतीं हैं कुछ तस्वीरें ।
विम्ब उभरता "निश्चल" जल में ,
झलकीं धुँधली कुछ तस्वीरें ।
कुछ खुशियाँ गैरो सी ,
कुछ अपनी ही पीरें।
गिरे अश्रु कण जल में ,
मिटती सब तस्वीरें ।
चलता नदिया तीरे तीरे,
हाथ फैलाए धीरे धीरे ।
चलना ही नियति जैसे ,
चलता है सँग लिए पीरें ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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