वो हर मौत से मज़हब जोड़ते हैं ।
यूँ वो धर्म से मज़हब जोड़ते हैं ।
करते हैं राजनीति हर मौत पर,
मुर्दों में यूँ सियासत खोजते हैं ।
.....
मरते रहे लाल भारत के भाल पे ।
बस एक मातृ भूमि के सवाल पे ।
भला क्या जाने वो आन देश की ,
चलते रहे हैं जो थैले सम्हाल के ।
...
सिंदूर उजड़ते , सूनी राखी ।
सूनी कोख , छाया की लाचारी ।
कुटिल नीतियाँ सत्ता की ।
सैनिक की छाती गोली खाती ।
....
नैतिकता पढ़ी कभी किताबों में ।
नैतिकता मिलती नही बाज़ारों में ।
सुनते आए किस्से बड़े सयानों से,
यह मिलती घर आँगन चौवरो में ।
......
आज फिर मुद्दों के कुछ भूचाल उठे ।
आरक्षण कहीं मज़हब के भाल उठे ।
खोतीं मर्यादाएँ फिर सारी की सारी ,
बे-कसूर के आज फिर शीश कटे ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
यूँ वो धर्म से मज़हब जोड़ते हैं ।
करते हैं राजनीति हर मौत पर,
मुर्दों में यूँ सियासत खोजते हैं ।
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मरते रहे लाल भारत के भाल पे ।
बस एक मातृ भूमि के सवाल पे ।
भला क्या जाने वो आन देश की ,
चलते रहे हैं जो थैले सम्हाल के ।
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सिंदूर उजड़ते , सूनी राखी ।
सूनी कोख , छाया की लाचारी ।
कुटिल नीतियाँ सत्ता की ।
सैनिक की छाती गोली खाती ।
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नैतिकता पढ़ी कभी किताबों में ।
नैतिकता मिलती नही बाज़ारों में ।
सुनते आए किस्से बड़े सयानों से,
यह मिलती घर आँगन चौवरो में ।
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आज फिर मुद्दों के कुछ भूचाल उठे ।
आरक्षण कहीं मज़हब के भाल उठे ।
खोतीं मर्यादाएँ फिर सारी की सारी ,
बे-कसूर के आज फिर शीश कटे ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
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