पाषाण हुए हृदय यहां सब ,
खो गई है यहां मानवता ।
सत्य कहां टिकता है अब ,
जीत रही है दानवता ।
....
झूठ के परदे उठते हैं ।
सत्य के चेहरे दिखते हैं ।
झूठ चलेगा तब तक,
सत्य छुपा है जब तक ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
घात के आघात से ।
स्वार्थ के परमार्थ से ।
लाभ हानि के खातों से ,
मित्र आज रहे व्यापार से ।
जान छिड़कते यूँ तो,
गला काटते प्यार से ।
मिला पग पग पग पे ,
साथ चले प्रतिकार से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
खो गई है यहां मानवता ।
सत्य कहां टिकता है अब ,
जीत रही है दानवता ।
....
झूठ के परदे उठते हैं ।
सत्य के चेहरे दिखते हैं ।
झूठ चलेगा तब तक,
सत्य छुपा है जब तक ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
घात के आघात से ।
स्वार्थ के परमार्थ से ।
लाभ हानि के खातों से ,
मित्र आज रहे व्यापार से ।
जान छिड़कते यूँ तो,
गला काटते प्यार से ।
मिला पग पग पग पे ,
साथ चले प्रतिकार से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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