शनिवार, 21 अप्रैल 2018

मुक्तक

पाषाण हुए हृदय यहां सब ,
 खो गई है यहां मानवता ।
 सत्य कहां टिकता है अब ,
 जीत रही है दानवता ।
....
 झूठ के परदे उठते हैं ।
 सत्य के चेहरे दिखते हैं ।
 झूठ चलेगा तब तक,
 सत्य छुपा है जब तक ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@..


घात के आघात से ।
 स्वार्थ के परमार्थ से ।
   लाभ हानि के खातों से ,
   मित्र आज रहे व्यापार से ।


 जान छिड़कते यूँ तो,
 गला काटते प्यार से ।
  मिला पग पग पग पे ,
 साथ चले प्रतिकार से ।


 .... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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