मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

मुक्तक केवट उतरा धीरे से अपने

नैया पार लगा केवट उतरा धीरे से ।
 नैया डोले नदिया तीरे धीरे धीरे से ।
 केवट चला धरा पर अपनी धीरे से ।
 नैया डूबी तीरे अपने धीरे धीरे से ।
....

चलते रहो शायद यही भाग्य होता है ।
  मन में बस एक विश्वास होता है ।
 करती फैसले कुदरत अपने तरीके से ,
 और कुछ नहीं हमारे हाथ होता है ।
   ...
चलते रहो शायद यही भाग्य हो ।
  मन में एक यही विश्वास हो।
 फैसला करे कुदरत अपने तरीके से ,
  तब सब कुछ हमारे हाथ हो।
   .... 
खोजो खुशी अपने आप मे ।
 बस हँस दो अपने हालात पे।
 भुलाकर दुनियाँ की ठोकरें ,
 विश्वास करो अपने आप पे।
....
कर इश्क़ अपने आप से, 
 जी जरा अपने वास्ते ।
 भूल रुस्वाई दुनियाँ की ,
 छोड़ जरा गम के रास्ते ।
  ...... विवेक दुबे"©...

ब्लॉग पोस्ट 28/9/18

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...