बुधवार, 18 अप्रैल 2018

शेर 47 से 60

47
वक़्त ने यूँ आजमाया मुझे ।
वक़्त पे ही अपनाया मुझे ।
....48
बदलता ही रहा वक़्त से वक़्त भी ।
 बे-वफा ही रहा वक़्त से वक़्त भी ।
----49
तदवीर से न बदल वक़्त की फितरत को ।
बदल वक़्त क्या कहेगा तू  किस्मत को ।
..50
लफ्ज़ लिखता मिटाता रहा मैं ।
 यूँ वक़्त अपना बिताता रहा मैं ।
...51
 जाने वो क्या वक़्त की, अधूरी चाह रही ।
 कलम चलती रही,  ख़ामोश निग़ाह रही ।
..52
हौंसलो से हुनर,  मुक़ाम पता है ।
मुसाफ़िर अकेला , थक जाता है ।
..53
घोर निराशा जब तिमिर गहराती है ।
सूरज की आभा छाया गढ़ जाती है ।
.... 54
साहिल को ही सागर हांसिल है ।
सहता जो सागर की हलचल है ।
 ...55
देते रहे साथ मेरा वक़्त वक़्त पर वो ।
 साथ चले थे लफ्ज़ किताबो से जो
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
18/4/18
डायरी 3
...56
तपते रहे अल्फ़ाज़ तपिश अहसास से ।
 आते रहे जाते रहे ,वो अपने अंदाज से ।
.... 57
 हर जवाब से सवाल निकालता रहा।
 वो इस तरह मुझे खुद में ढालता रहा ।
.....58
 हक़ीम था वो कुरेद गया  जख्मों को ।
 उधेड़ गया वो कुछ याद जख्मों को ।
....59
सिया जब भी जिगर को अपने ।
 निशां रहे पैबंद दिखे जिगर पे ।
...60
  सवाल उठते रहे निग़ाह में ,
  निग़ाह से गुजरते हर शख्स के ।
.... 
 
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
18/4/18
डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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