शनिवार, 21 अप्रैल 2018

तू मेरी ग़ज़ल को

तू मेरी ग़जल को काफ़िया दे दे ।
 तू मेरे हर शेर के रदीफ़ ले ले ।

 रहे हर शेर में नाम तेरा ,
 तू बस उस शेर की रजा दे दे ।

 न लिखूँगा फिर ग़जल कोई ,
 तू इस ग़जल की वज़ह दे दे ।

 लिखूं एक मक़्ता तेरे नाम से ,
  शेर-ऐ-मतला में तू मुझे ले ले ।

 आया हूँ रिंद की मानिंद ऐ साक़ी ,
  ग़जल को काफ़िया ऐ नशा दे दे ।

 ... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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