शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

मुक्तक सामयिक 3

जब जब उसमे दोस्त देखा ।
 तब तब उसने ख़ंजर फेका  ।
 जख्म दिए हैं गहरे गहरे से ,
 वो ना-पाक नियत है कैसा ।
...
   अब क्या समझे क्या समझाएं ।
   अब तो आर पार ही हो जाए ।
   मरते है अब आम नागरिक भी ,
  रात अँधेरे गोली गोले चल जाए ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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