बुधवार, 18 अप्रैल 2018

शेर 66 से 80


66
तू मेरा हक़ीम हुआ ,
           होंसला-ऐ-यक़ीन हुआ ।
 थामकर नब्ज़ सफ़र-ऐ-ज़िंदगी ,
                  तू मेरा मतीन हुआ ।
(मतीन/निर्धारित/ ठोस)
...67
तलाश-ए-ज़िंदगी में गुम हुआ।
 कुछ यूँ ज़िंदगी का मैं हुआ ।
...68
 अर्श पे अना लिए चलता रहा ।
 गैरत-ऐ-अहसास चुभता रहा ।
...69
आइना तू सवार दे मुझे ।
  मैं कुछ निहार लूँ तुझे ।।
  ....70
तहज़ीब ही हुनर-ए-तमीज़ है ।
 यूँ तो इंसान बहुत बदतमीज है ।
...71
खबर नही के तू बेखबर सा है ।
कदम कदम तू हम सफर सा है।
....72
 समझते हैं समझौता जिसे एक हार है वो ।
 टूटता सामने "निश्चल"जिसके प्यार है वो ।
......73
  तेरी हर दुआ , रज़ा खुदा हो जाए ।
 भटकी कश्ती का, तू नाख़ुदा हो जाए।
...74
 दुआ के ताबीज को तरकीब बना लूँ मैं ।
 उस तरकीब से तक़दीर सजा लूँ मैं ।
...75
हुनर वो नही ,   जो लेना जाने ।
हुनर वो है ,      जो देना जाने ।
---76
तक़दीर ही तकदीरें तय किया करती हैं ।
 रास्ते वही मंज़िले बदल दिया करती हैं ।
..77
जज़्ब कर उस अस्र अक़्स को ,
   जो कहूँ मैं दुआ तुझको ।
अस्र .. समय
...78
वो यूँ दुआ का करम फ़रमाती है ।
बद्दुआएं अब बेरुखी फ़रमाती है ।
....79
अहसान जिंदगी का इतना मुझ पर ।
करम फरमाया हर अहसान का मुझ पर ।
...80
कैसी अदावत है आज महफ़िल की ।
खिड़कियां खुलती नही अब दिल की ।

 ... विवेक दुबे"निश्चल"@....
 18/4/18

डायरी 3

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