66
तू मेरा हक़ीम हुआ ,
होंसला-ऐ-यक़ीन हुआ ।
थामकर नब्ज़ सफ़र-ऐ-ज़िंदगी ,
तू मेरा मतीन हुआ ।
(मतीन/निर्धारित/ ठोस)
...67
तलाश-ए-ज़िंदगी में गुम हुआ।
कुछ यूँ ज़िंदगी का मैं हुआ ।
...68
अर्श पे अना लिए चलता रहा ।
गैरत-ऐ-अहसास चुभता रहा ।
...69
आइना तू सवार दे मुझे ।
मैं कुछ निहार लूँ तुझे ।।
....70
तहज़ीब ही हुनर-ए-तमीज़ है ।
यूँ तो इंसान बहुत बदतमीज है ।
...71
खबर नही के तू बेखबर सा है ।
कदम कदम तू हम सफर सा है।
....72
समझते हैं समझौता जिसे एक हार है वो ।
टूटता सामने "निश्चल"जिसके प्यार है वो ।
......73
तेरी हर दुआ , रज़ा खुदा हो जाए ।
भटकी कश्ती का, तू नाख़ुदा हो जाए।
...74
दुआ के ताबीज को तरकीब बना लूँ मैं ।
उस तरकीब से तक़दीर सजा लूँ मैं ।
...75
हुनर वो नही , जो लेना जाने ।
हुनर वो है , जो देना जाने ।
---76
तक़दीर ही तकदीरें तय किया करती हैं ।
रास्ते वही मंज़िले बदल दिया करती हैं ।
..77
जज़्ब कर उस अस्र अक़्स को ,
जो कहूँ मैं दुआ तुझको ।
अस्र .. समय
...78
वो यूँ दुआ का करम फ़रमाती है ।
बद्दुआएं अब बेरुखी फ़रमाती है ।
....79
अहसान जिंदगी का इतना मुझ पर ।
करम फरमाया हर अहसान का मुझ पर ।
...80
कैसी अदावत है आज महफ़िल की ।
खिड़कियां खुलती नही अब दिल की ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
18/4/18
डायरी 3
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें