शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

मुक्तक कुछ ख्याल 6

बे-वाक हूँ बेईमान नही ।
 भोला हूँ नादान नही ।
 पढ़ लेता हूँ निगाहों को ,
 हाँ चेहरों की पहचान नही ।
....
खुद्दार हूँ तल्ख मिज़ाज़ रखता हूँ ।
 जुबां हाज़िर जवाब रखता हूँ ।
भूलता नही कभी दोस्ती मैं ,
 पाई पाई का हिसाब रखता हूँ ।
.... 
मार्च क्लोजिंग  में कुछ हिसाब देख लूँ।
 कितना नगद रहा कितना उधार देख लूँ ।
  लिख लूँ  रोकड़ खाते आज फिर नए ,
 जो है मुनाफा उसे अपने पास देख लूँ ।
...
करता हूँ मंजूर हक़ीक़त को ।
 नही इल्ज़ाम देता कुदरत को ।
  स्याह के बाद आते हैं उजाले  ,
  देखता हूँ  आते दिनकर को ।
 .... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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