रविवार, 15 अप्रैल 2018

मुक्तक मशविरे हज़ार

मशविरे हज़ार मिलते हैं ।
  सरे राह यार मिलते हैं ।
  जीतना है ख़ुद से ख़ुद को,
  मौके बार बार मिलते हैं ।
....

चला रसातल को मानव ।
 हावी होते अब दानव ।
  बातें करते जो बड़ी बड़ी,
 हैं वो बस रद्दी कागज़ ।
 .... 

इतर नही मैं दुनियाँ से ।
 कायम हूँ मैं दुनियाँ से ।
 रोता हूँ मैं भी हँसता हूँ ,
 मिलकर इस दुनियाँ से ।
...

  *इतर* - *भिन्न*
...
वे-मौके पर जो याद करे ,
  वो सच्चा मित्र कहलाए ।
  मौके पर जो साथ चले ,
  वो स्वार्थ सिध्द को आए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

Blog post 15/4/18


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