साँस घुटी इंसान की ।
आई आँधी शैतान की ।
ध्वस्त हुआ हिमालय भी,
ठोकर से शैतान की ।
....
करता हदें पार आदमी ।
स्वार्थ पर सवार आदमी ।
चासनी लपेट कर जुवां पर ,
करता बेशुमार वार आदमी ।
....
चला रसातल को मानव ।
हावी होते अब दानव ।
बातें करते जो बड़ी बड़ी,
हैं वो बस रद्दी कागज़ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
आई आँधी शैतान की ।
ध्वस्त हुआ हिमालय भी,
ठोकर से शैतान की ।
....
करता हदें पार आदमी ।
स्वार्थ पर सवार आदमी ।
चासनी लपेट कर जुवां पर ,
करता बेशुमार वार आदमी ।
....
चला रसातल को मानव ।
हावी होते अब दानव ।
बातें करते जो बड़ी बड़ी,
हैं वो बस रद्दी कागज़ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें