..81
पढ़ता जो नजर सा ,लफ्ज़ रूठ जाते ।
पढ़ता जो लफ्ज़ सा ,इशारे रूठ जाते ।
..82
किताब खुली खुली जो बन्द सा मगर ।
सफ़े सफ़े पर क्यु चिलमन सा असर ।
.... 83
अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने।
खुद को बा-खूब सजाया उसने।
.
...84
एक मुख़्तसर ग़जल कही मैंने ।
एक निग़ाह नजर कही मैंने ।
9/4/18
डायरी 3
...85
नजर का खेल , बड़ा अजीब है ।
नज़र अंदाज़ वही , जो अज़ीज है ।
.... 86
इल्म वो नही जो ख़ामोश रह गया ।
इल्म वो जो में दुनियाँ बयां हो गया ।
...87
बदले मेरे शहर के हालात हैं ।
संग निग़ाह खँजर हाथ है ।
....88
सैय्यदों के शहर में, हैं परिंदे कहर में ।
उड़ें तो उड़ें कैसे, हैं फंदे हर नजर में ।
...
...विवेक दुबे"निश्चल"@...
18/4/18
डायरी 3
पढ़ता जो नजर सा ,लफ्ज़ रूठ जाते ।
पढ़ता जो लफ्ज़ सा ,इशारे रूठ जाते ।
..82
किताब खुली खुली जो बन्द सा मगर ।
सफ़े सफ़े पर क्यु चिलमन सा असर ।
.... 83
अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने।
खुद को बा-खूब सजाया उसने।
.
...84
एक मुख़्तसर ग़जल कही मैंने ।
एक निग़ाह नजर कही मैंने ।
9/4/18
डायरी 3
...85
नजर का खेल , बड़ा अजीब है ।
नज़र अंदाज़ वही , जो अज़ीज है ।
.... 86
इल्म वो नही जो ख़ामोश रह गया ।
इल्म वो जो में दुनियाँ बयां हो गया ।
...87
बदले मेरे शहर के हालात हैं ।
संग निग़ाह खँजर हाथ है ।
....88
सैय्यदों के शहर में, हैं परिंदे कहर में ।
उड़ें तो उड़ें कैसे, हैं फंदे हर नजर में ।
...
...विवेक दुबे"निश्चल"@...
18/4/18
डायरी 3
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें