बुधवार, 18 अप्रैल 2018

शेर 81 से 88

 ..81
पढ़ता जो नजर सा ,लफ्ज़ रूठ जाते ।
 पढ़ता जो लफ्ज़ सा ,इशारे रूठ जाते ।
..82
 किताब खुली खुली जो बन्द सा मगर ।
  सफ़े सफ़े पर क्यु चिलमन सा असर ।
.... 83
अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने।
 खुद को बा-खूब सजाया उसने।
            .
...84
 एक मुख़्तसर ग़जल कही मैंने ।
 एक निग़ाह नजर कही मैंने ।
  9/4/18
डायरी 3
 ...85
नजर का खेल , बड़ा अजीब है ।
 नज़र अंदाज़ वही , जो अज़ीज है ।
.... 86
इल्म वो नही जो ख़ामोश रह गया ।
 इल्म वो जो में दुनियाँ बयां हो गया ।
...87
बदले मेरे शहर के हालात हैं ।
 संग निग़ाह खँजर हाथ है ।
....88
 सैय्यदों के शहर में,  हैं परिंदे कहर में ।
 उड़ें तो उड़ें कैसे,  हैं फंदे हर नजर में ।
...
 ...विवेक दुबे"निश्चल"@...

 18/4/18

डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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