मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

मुक्तक राह

 इतिहास लिखें न हम कल का।
 इतिहास लिखें हम कल का।
      राह बदल दें हम सरिता की,
      सत्य लिखें हम पल पल का।
  ...
  जानता हूँ फिर भी थका न था ।
 अँधेरा ही मगर हम सफ़र था ।
 चलता रहा सफ़र राह पर मेरा ,
  तलाश में उजालों की चला था ।
 ...
मंजिल से पहले घबराना कैसा ।
 बीच राह तेरा थक जाना कैसा ।
 भेद सका न हो अब तक कोई,
 बस तू साध निशाना एक ऐसा । 
 ...
मशविरे हज़ार मिलते हैं ।
  सरे राह यार मिलते हैं ।
  जीतना है ख़ुद से ख़ुद को,
  मौके बार बार मिलते हैं ।
....
चलते जाना तू चलते जाना ।
पतझड़ में भी फूल खिलाना ।
 राह कठिन इस ज़ीवन वन की,
 ज़ीवन वन गुम हो न जाना ।
  ... 
 छंटती है धुँध कोहरे हटते हैं।
 खिली धूप से चेहरे उभरते हैं।
   चलते छोड़कर राह पुरानी ,
   नई राह होंसले आंगे बढ़ते हैं।
... 
चलते जाना तू चलते जाना ।
पतझड़ में भी फूल खिलाना ।
 राह कठिन इस जीवन वन की,
 ज़ीवन वन गुम हो न जाना ।
...
सटीकता पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ था ।
 चेहरा था  निर्भीक मगर डरा हुआ था ।
 गुजरता था मैं अनजानी राहों से फिर भी ,
 अपने "निश्चल" विश्वास से भरा हुआ था ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

Blog post 27/2/18
डायरी 3

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