फँसता जाता ही मैं प्रपंचों में ।
भरता जाता हलाहल कंठो में ।
विचित्र वेदना है मन पंक्षी की ,
मन उलझा ज़ीवन के फंदों में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
भरता जाता हलाहल कंठो में ।
विचित्र वेदना है मन पंक्षी की ,
मन उलझा ज़ीवन के फंदों में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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