कुछ यादों को ताजा कर ले ।
आज शरारत सांझा कर लें ।
जीते हैं मरने की ख़ातिर ,
जीने का आज इरादा कर लें ।
...
तू इतर नही मुझसे ।
क्यूँ बे-जिकर तुझसे ।
मैं धुंध हूँ गुबार का ,
तू अब्र कहे किससे ।
....
इरत-भिन्न - दूसरा
...
हँसी लबों पे बेहिसाब रखो ।
पर हर हँसी का हिसाब रखो ।
मुस्कुरा दें ख़यालों में भी हम,
तासीर रिश्ता यूँ इख़्तियार रखो ।
....
वो साथ चला अँधियारों सा ।
अहसास लिए उजियारों का ।
चमक उठा वो जब जब ,
जो ख़ौफ़ लगा अँधियारों का ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@.
आज शरारत सांझा कर लें ।
जीते हैं मरने की ख़ातिर ,
जीने का आज इरादा कर लें ।
...
तू इतर नही मुझसे ।
क्यूँ बे-जिकर तुझसे ।
मैं धुंध हूँ गुबार का ,
तू अब्र कहे किससे ।
....
इरत-भिन्न - दूसरा
...
हँसी लबों पे बेहिसाब रखो ।
पर हर हँसी का हिसाब रखो ।
मुस्कुरा दें ख़यालों में भी हम,
तासीर रिश्ता यूँ इख़्तियार रखो ।
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वो साथ चला अँधियारों सा ।
अहसास लिए उजियारों का ।
चमक उठा वो जब जब ,
जो ख़ौफ़ लगा अँधियारों का ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@.
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