यह यक्ष प्रश्न खड़ा है आज तक ।
प्रगति के दौर में पशुता आज तक ।
यह आग तभी बुझेगी ।
नारी चंडी रूप धरेगी ।
मर गया बल पौरुष पुरुषार्थ सब ,
आँख मूंदते क्लीव से बदत्तर सब ।
रक्षा के वचन करते अग्नि समक्ष ,
है यह खोखला दावा भर बस ।
बेशर्मो की जमात बड़ी है ।
निर्लज़्ज़ को लाज नही है ।
धर्म नाम की आड़ बड़ी है ।
नारी ही हर बार छली है ।
आवाहन भी होगा ।
आगम भी होगा ।
चंडी बनेगी नारी ,
नाश दुराचार का होगा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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