बुधवार, 18 अप्रैल 2018

शेर 104 से 117

104
भर गया दामन , दुआओं के फूलों से ।
खुशबू दुआओं की,जा मिली रसूलों से ।
....105
 निगाह नजारों की भी न चाहत रही  ।
 जहां साँसों की भी न आहट रही ।
 ...106
रोशन रहे शमा सुबह के उजालों तक ।
  आ जाएं वो आने के किए वादों तक ।
...107
 चाहत रात की , खातिर उजाले की ।
 मयकदा रिंद की ,  मय प्याले की ।
.....108
जिंदगी न समझ सकी हालात को ।
 बुझती गई प्यास फिर प्यास को ।
... 109
न मिला निग़ाह जमाने से ख़ातिर अपनी ।
चल नजर बचा जमाने से ख़ातिर अपनी ।
 110
  निग़ाह शक से देखता है जमाना अक़्सर ,
   भुलाकर वो तेरा   मेहनतकश मुक़द्दार ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
18/4/18
डायरी 3
111
मुसाफ़िर हमसे कहा राह पाते है ।
 हम जुगनूं रातों को टिमटिमाते है  ।
   ..112
तारा टुटा फ़लक से जमीं नसीब न थी ।
ख़ाक हुआ हवा में मुफ़लिसी केसी थी ।।
..113
 फूल सा जो महकता सा रहा है ।
  यूँ वो रिश्ता वा-खूब सा रहा है ।
  ..114
अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने ।
 खुद को बा-खूब सजाया उसने ।
....115
ख्वाहिशें न बनें "विवेक"सज़ा ।
खुशियों की हो इतनी सी बजह।
...116
सजा लीजिए या सज़ा दीजिए ।
बस दिल मे इतनी सी जगह दीजिए ।
117
नही कोई भी शेर मेरा मुकम्मल है ।
जो छूटता पीछे आज वही सामने कल है ।


   ...... विवेक दुबे "निश्चल"@...
18/3/18

डायरी 3




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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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