104
भर गया दामन , दुआओं के फूलों से ।
खुशबू दुआओं की,जा मिली रसूलों से ।
....105
निगाह नजारों की भी न चाहत रही ।
जहां साँसों की भी न आहट रही ।
...106
रोशन रहे शमा सुबह के उजालों तक ।
आ जाएं वो आने के किए वादों तक ।
...107
चाहत रात की , खातिर उजाले की ।
मयकदा रिंद की , मय प्याले की ।
.....108
जिंदगी न समझ सकी हालात को ।
बुझती गई प्यास फिर प्यास को ।
... 109
न मिला निग़ाह जमाने से ख़ातिर अपनी ।
चल नजर बचा जमाने से ख़ातिर अपनी ।
110
निग़ाह शक से देखता है जमाना अक़्सर ,
भुलाकर वो तेरा मेहनतकश मुक़द्दार ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
18/4/18
डायरी 3
111
मुसाफ़िर हमसे कहा राह पाते है ।
हम जुगनूं रातों को टिमटिमाते है ।
..112
तारा टुटा फ़लक से जमीं नसीब न थी ।
ख़ाक हुआ हवा में मुफ़लिसी केसी थी ।।
..113
फूल सा जो महकता सा रहा है ।
यूँ वो रिश्ता वा-खूब सा रहा है ।
..114
अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने ।
खुद को बा-खूब सजाया उसने ।
....115
ख्वाहिशें न बनें "विवेक"सज़ा ।
खुशियों की हो इतनी सी बजह।
...116
सजा लीजिए या सज़ा दीजिए ।
बस दिल मे इतनी सी जगह दीजिए ।
117
नही कोई भी शेर मेरा मुकम्मल है ।
जो छूटता पीछे आज वही सामने कल है ।
...... विवेक दुबे "निश्चल"@...
18/3/18
डायरी 3
भर गया दामन , दुआओं के फूलों से ।
खुशबू दुआओं की,जा मिली रसूलों से ।
....105
निगाह नजारों की भी न चाहत रही ।
जहां साँसों की भी न आहट रही ।
...106
रोशन रहे शमा सुबह के उजालों तक ।
आ जाएं वो आने के किए वादों तक ।
...107
चाहत रात की , खातिर उजाले की ।
मयकदा रिंद की , मय प्याले की ।
.....108
जिंदगी न समझ सकी हालात को ।
बुझती गई प्यास फिर प्यास को ।
... 109
न मिला निग़ाह जमाने से ख़ातिर अपनी ।
चल नजर बचा जमाने से ख़ातिर अपनी ।
110
निग़ाह शक से देखता है जमाना अक़्सर ,
भुलाकर वो तेरा मेहनतकश मुक़द्दार ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
18/4/18
डायरी 3
111
मुसाफ़िर हमसे कहा राह पाते है ।
हम जुगनूं रातों को टिमटिमाते है ।
..112
तारा टुटा फ़लक से जमीं नसीब न थी ।
ख़ाक हुआ हवा में मुफ़लिसी केसी थी ।।
..113
फूल सा जो महकता सा रहा है ।
यूँ वो रिश्ता वा-खूब सा रहा है ।
..114
अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने ।
खुद को बा-खूब सजाया उसने ।
....115
ख्वाहिशें न बनें "विवेक"सज़ा ।
खुशियों की हो इतनी सी बजह।
...116
सजा लीजिए या सज़ा दीजिए ।
बस दिल मे इतनी सी जगह दीजिए ।
117
नही कोई भी शेर मेरा मुकम्मल है ।
जो छूटता पीछे आज वही सामने कल है ।
...... विवेक दुबे "निश्चल"@...
18/3/18
डायरी 3
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