बुधवार, 18 अप्रैल 2018

शेर 41 से 46


41
तारा टूटा फ़लक से जमीं नसीब न थी ।
ख़ाक हुआ हवा में मुफ़लिसी केसी थी ।।
..42
सितारे की चाह है ,चाँद से इक़रार है ।
 चाँदनी आई साँझ ढले,शबनम बेकरार है ।
....43
  खामोशी ओढ़कर इजहार रहा ।
  बे-इंतहां  उसका कुछ प्यार रहा ।
....44
कोई खामोशी अपनी भी बयां करो ।
 कुछ लफ्ज़ अपने ज़िगर जुदा करो ।
...45
खोजते सभी  रास्ते यहीं कही हैं ।
चूकती निग़ाह,फासला दो पग नही है ।
... 45
 कैसे छोड़ दूँ मै शहर अपना ।
 अभी शहर में अजनबी बहुत है ।
....46
ख़ातिर खुशी की ,हँसता रहा बार बार ।
  मेरा आईना भी ,मुझसे रहा बे-ऐतवार ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
18/4/18
डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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