रविवार, 15 अप्रैल 2018

मुक्तक अँधेरों से


कोशिशों को ख़ता बनाता हूँ ।
 रोशनी सा जल जाता हूँ ।
 बिखेर कर अपने आप को,
 अँधेरों में मैं बिखर जाता हूँ ।

कोर कोर बह जाने दो ।
 दर्दों को ढह जाने दो ।
  सूख कर अश्कों को,
 मोती सा संवर जाने दो ।
...
अँधेरों से अँधेरे छीन लें हम जरा ।
चराग़-ऐ-रोशनी बाँट दे हम जरा ।
वक़्त से न जीत पाएंगे जानते हम,
 वक़्त से ही वक़्त सींच लें हम जरा ।
 ... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3

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