कोशिशों को ख़ता बनाता हूँ ।
रोशनी सा जल जाता हूँ ।
बिखेर कर अपने आप को,
अँधेरों में मैं बिखर जाता हूँ ।
कोर कोर बह जाने दो ।
दर्दों को ढह जाने दो ।
सूख कर अश्कों को,
मोती सा संवर जाने दो ।
...
अँधेरों से अँधेरे छीन लें हम जरा ।
चराग़-ऐ-रोशनी बाँट दे हम जरा ।
वक़्त से न जीत पाएंगे जानते हम,
वक़्त से ही वक़्त सींच लें हम जरा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
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