बुधवार, 18 अप्रैल 2018

शेर 1से 18

1
डूबा न कभी मै बस तैरता रहा ।
 तिनके सा बजूद अखरता रहा ।
......2
 जुबां न कह सकी वो लफ्ज़ कह गए ।
 अल्फ़ाज़ मेरे अश्क़ से बहकर गए ।
.... 3
  संग पड़ा था जमीं गड़ा था ।
  तरकश कर खुदा कहा था ।
....4
शिद्दत से पुकारा इल्म सा सराहा उसने ।
 गढ़कर निगाह से बुत कह पुकारा उसने।
.....5
 सबब परेशानियों का ,फ़क़त इतना रहा ।
   तू परेशां न रहा ,    मैं भी परेशां न रहा ।
......6
   मोल न रहा मेरा कुछ इस तरह ।
 बेमोल कहा उसने कुछ जिस तरह ।
....7
मैं तेरे इस जवाब का क्या हिसाब दूँ ।
जिंदगी तुझे जिंदगी का क्या हिसाब दूँ ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@..
8
उठा दिया अपने घर का ,
 रौशनी दिखाने चला था । 
  उजियारे वो अपने  ,
   यूँ मिटाने चला था ।
....9
दिए जले जो रातों को ,
                  खोजते अहसासों को ।
  जलाकर अपनी बाती ,
                    टटोलते अँधियारों को ।
....10
एक मेरा भी अंदाज़ है , राख होने का ।
 सुलग आखरी कश तक,ज़िंदा रहने का ।
  ..11
 हराकर उम्र शौक पाले थे, बड़े शौक से ।
 बुझे चिराग़ लड़ न सके,अंधेरों के दौर से।
....
   .....विवेक दुबे"निश्चल"©....
12/2/18
डायरी 3

   12
मैं तेरे इस सवाल का , क्या ज़वाब दूँ ।
ज़िंदगी तुझे ज़िंदगी का , क्या हिसाब दूँ ।
...13
 छुअन की उसको , दरिया की चाह थी   ।
 बहता गया बस वो , निग़ाह में उसकी ।
...14
देख संग दिली दुनियाँ की, हैरां है बुत ।
  सोचता है खड़ा वो, मैं बुत या ये बुत ।
   ....15
लोटता है वो निग़ाह भर देख मुझे ।
 क्यों बुत समझ बैठता है वो मुझे ।
  ...... 16
उजाला जब भी चला है अंधेरों ने छला है
  ।
 रोशनी की चाह में ,सूरज तो बस जला है ।
  ....17
 मेरी प्रेरणा हो या नही ,नही जानता मैं।
 हाँ इतना पता है तुम से सीखा बहुत है ।
 ...18
हाँ मैं कुछ कहता हूँ कुछ लिखता हूँ ।
 बात कभी कभी किताबों से आंगे कहता हूँ ।
  ....... विवेक दुबे"निश्चल"@...
18/4/18
डायरी 3


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