बुधवार, 18 अप्रैल 2018

शेर 61 से 65

...61
बैचेनियाँ दिल निगाह झलक लाए हैं ।
लफ्ज़ बेजुवां आँख छलक आए हैं ।
..62
 माँगकर अश्क़ मेरे हँसी बाँटने आए है ।
 वो हमें खुद से खुद यूँ काटने आए हैं ।
  ...63
ले हाथ रंग गुलाल ,
            निग़ाह मलाल लाए हैं।
  रहे बेचैन आज हम ,
             वो बहुत सवाल लाए हैं ।
...64
 धुल जाएगी रंगत शूलों की ,
                         टीस साथ निभाएगी ।
आती होली साल-दर-साल ,
                         होली फिर आएगी ।
....65
बेताब कदम मंजिल छूने को ।
जमीं बैचेन आसमां होने को ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
 19/3/18
डायरी 3

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