शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

मुक्तक कुछ ख्याल 7

मुक़ाम बहुत है शहर में मेरे ।
 क़याम न हुआ मगर कोई ।
 उजड़ रहा है मेरे शहर से ,
 चैन-ओ-शुकूँ गोई ।
....
अपनो की इस भीड़ में ,
तन्हा नही कभी कोई ।
कमी इस बात की,
के,अपना चुना नही कोई ।
...
  कुसूर बस इतना रहा ।
  बे-कुसूर मैं अदना रहा ।
  न बढ़ा क़द फ़रेब का ,
  सच तले मैं चलता रहा ।
 .... 
वो नुक़्स निकालता रहा ।
 मैं ख़ुद को सम्हालता रहा ।
 उतारकर शीशे में ख़ुद को,
 मैं संग से सम्हालता रहा ।

  .... विवेक दुबे"निश्चल"©....

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