न्याय तुला तराजू पर ,
अन्याय जहाँ बिकता हो ।
हो कीमत बस पैसे की,
ज़िस्म जहाँ बिकता हो ।
भेंट चढ़ा सब सत्ता की ,
आँखों से न दिखता हो ।
उज़ागर घूमे व्यभिचारी ,
लाचार बेचारी जनता हो ।
न्याय ब्यवस्था की लाचारी ,
साक्ष्य जहाँ निर्णय करता हो ।
बिक मिट जाते साक्ष्य सभी ,
फिर बेचारा क्यों न अंधा हो ।
जब कानून बनाने बालों ने ,
अपनी सुविधा को बदला हो ।
न्याय व्यवस्था क्या करे बेचारी ,
जब संसद ने निर्णय पलटा हो ।
स्तब्ध तब न्याय देवता भी ,
दानव ने देवों को जकड़ा हो ।
कानून नही हाथों में उनके ,
सत्ता ने न्याय को पलटा हो ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 1
अन्याय जहाँ बिकता हो ।
हो कीमत बस पैसे की,
ज़िस्म जहाँ बिकता हो ।
भेंट चढ़ा सब सत्ता की ,
आँखों से न दिखता हो ।
उज़ागर घूमे व्यभिचारी ,
लाचार बेचारी जनता हो ।
न्याय ब्यवस्था की लाचारी ,
साक्ष्य जहाँ निर्णय करता हो ।
बिक मिट जाते साक्ष्य सभी ,
फिर बेचारा क्यों न अंधा हो ।
जब कानून बनाने बालों ने ,
अपनी सुविधा को बदला हो ।
न्याय व्यवस्था क्या करे बेचारी ,
जब संसद ने निर्णय पलटा हो ।
स्तब्ध तब न्याय देवता भी ,
दानव ने देवों को जकड़ा हो ।
कानून नही हाथों में उनके ,
सत्ता ने न्याय को पलटा हो ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 1
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