एक शाम वो रहा साथ सा ।
लफ्ज लफ्ज़ रहा रियाज़ सा ।
देता रहा साथ वक़्त पर वो ।
साथ चल लफ्ज़ किताब सा ।
.....
आऊँ होले से अहसासों में तेरे ।
वक़्त बिताऊँ छाँव जुल्फों में तेरे ।
हो स्पंदन साँसों से साँसों का ,
दवा बन जाए निग़ाह दीदार तेरे ।
...
मेरे यह ख़्वाब सुहाने होते हैं ।
नजदीकियों के बहाने होते हैं ।
कुछ वक़्त और बिता लूँ तेरे सँग,
यह दिन तो आने जाने होते हैं ।
....
घुट गए अल्फ़ाज़ जुवां आने से पहले ।
वक़्त दिया था जुवां ने बस कुछ पहले ।
नमी निगाहों की यही कहती रही ,
काश वक़्त आया होता कुछ पहले ।
... विवेक दुबे "निश्चल"@...
लफ्ज लफ्ज़ रहा रियाज़ सा ।
देता रहा साथ वक़्त पर वो ।
साथ चल लफ्ज़ किताब सा ।
.....
आऊँ होले से अहसासों में तेरे ।
वक़्त बिताऊँ छाँव जुल्फों में तेरे ।
हो स्पंदन साँसों से साँसों का ,
दवा बन जाए निग़ाह दीदार तेरे ।
...
मेरे यह ख़्वाब सुहाने होते हैं ।
नजदीकियों के बहाने होते हैं ।
कुछ वक़्त और बिता लूँ तेरे सँग,
यह दिन तो आने जाने होते हैं ।
....
घुट गए अल्फ़ाज़ जुवां आने से पहले ।
वक़्त दिया था जुवां ने बस कुछ पहले ।
नमी निगाहों की यही कहती रही ,
काश वक़्त आया होता कुछ पहले ।
... विवेक दुबे "निश्चल"@...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें