रविवार, 15 अप्रैल 2018

मुक्तक एक शाम वो रहा साथ सा

एक शाम वो रहा साथ सा ।
 लफ्ज लफ्ज़ रहा रियाज़ सा ।
  देता रहा साथ वक़्त पर वो ।
 साथ चल लफ्ज़ किताब सा ।
..... 
आऊँ होले से अहसासों में तेरे ।
 वक़्त बिताऊँ छाँव जुल्फों में तेरे ।
  हो स्पंदन साँसों से साँसों का ,
  दवा बन जाए निग़ाह दीदार तेरे ।
...
मेरे यह ख़्वाब सुहाने होते हैं ।
 नजदीकियों के बहाने होते हैं ।
 कुछ वक़्त और बिता लूँ तेरे सँग,
 यह दिन तो आने जाने होते हैं ।
....

घुट गए अल्फ़ाज़ जुवां आने से पहले ।
 वक़्त दिया था जुवां ने बस कुछ पहले ।
 नमी निगाहों की यही कहती  रही ,
 काश वक़्त आया होता कुछ पहले ।
... विवेक दुबे "निश्चल"@...

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