बुधवार, 18 अप्रैल 2018

शेर 133 से 151

133
इश्क़ में रूहें करम अता फ़रमाती है ।
लोग बुतों की सूरत पर मरा करते है ।
134
पाकीजगी को जो सम्हाला हमने ।
नापाकी के इल्जाम लगाए जमाने ने ।
135
नियति ने "विवेक" कुछ तो तय किया होगा ।
जो घट रहा है वो तेरे लिए सही होगा ।
136
यह मंजिल नही मेरी सफ़र वांकी है ।
मक़ाम अभी और भी आएंगे ।
137
अलग होता नही कुछ जमाने मे ।
निग़ाह बदलती है बस मिलाने में ।
138
एक दुआ की ख़ातिर टूटता सितारों सा ।
कुछ यादों की ख़ातिर मैं अधूरे वादों सा ।
139
हुनर वो नही जो लेना जाने ।
हुनर वो है जो देना जाने ।
140
भीड़ बहुत थी पास मेरे मुस्कुराने बालों की ।
मेरी हर शिकस्त पर जश्न मनाने बालों की।
141
कवि देखता दुनियाँ को दुनियाँ की नजर से।
कवि देखता दुनियाँ की बस अपनी नजर से ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"@..
डायरी 3
142
मिले तेरे मुकद्दर से वो सब तुझे ।
मिला न मेरे मुक़द्दर से जो मुझे ।
143
हूँ होश में , मैं मदहोश हूँ मगर ।
जिंदगी तेरे अंदाज़ से,हैरां हूँ मगर ।
144
लाभ हानि के खाते लिखते सब ।
मिलते नही लोग बे-मतलब अब ।
145
ख़्वाब सहेजे कुछ ख़्वाब समेटे ।
कुछ संग उठ खड़े कुछ अध लेटे ।
146
नियति ने कुछ तो तय किया होगा ।
जो घट रहा है वो तेरे लिए सही होगा ।
147
हुनर वो नही जो लेना जाने ।
हुनर वो है जो देना जाने ।
148
भीड़ बहुत थी पास मेरे मुस्कुराने बालो की
मेरी हर शिकस्त पर जश्न मनाने बालो की
149
कोशिश की हार कहाँ ।
प्रयास है प्रतिसाद जहाँ ।
150
ख्वाहिशें न बने "विवेक"सज़ा ।
खुशियों की हो इतनी सी बजह।
151
समंदर में तूफान छुपे होते है ।
साहिल अक्सर खामोश होते है ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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