एक साथी की तलाश रही
ज़िंदगी साथ साथ रही ।
न मिला मुक़ाम राहों को ,
एक अधूरी सी आस रही ।
खुशी के एक पल की ख़ातिर ,
ख़ुश ज़िंदगी भी उदास रही ।
उन तन्हाइयों के मंज़र की ,
सजती तन्हा ही बारात रही
टूटता ही रहा क़तरा क़तरा संग मैं ,
तराशने की मुझे उसकी चाह रही।
बिखर गया पिघलकर मोम सा ,
रोशनी की उसको इतनी चाह रही ।
प्रीत का "निश्चल" मीत मैं बना ,
साथी की उसको यूँ चाह रही ।
...... विवेक दुबे"निश्चल"@...
ज़िंदगी साथ साथ रही ।
न मिला मुक़ाम राहों को ,
एक अधूरी सी आस रही ।
खुशी के एक पल की ख़ातिर ,
ख़ुश ज़िंदगी भी उदास रही ।
उन तन्हाइयों के मंज़र की ,
सजती तन्हा ही बारात रही
टूटता ही रहा क़तरा क़तरा संग मैं ,
तराशने की मुझे उसकी चाह रही।
बिखर गया पिघलकर मोम सा ,
रोशनी की उसको इतनी चाह रही ।
प्रीत का "निश्चल" मीत मैं बना ,
साथी की उसको यूँ चाह रही ।
...... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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