..... वात्सल्य माँ का ...
चलती वो अँधियारों संग ,
अपने अँधियारे लेकर ।
चलती अथक भाव से ,
उजियारों की ख़ातिर ,
उजियारों से लड़कर ।
पिसती ज़ीवन की ख़ातिर ,
ज़ीवन में खुद घिसकर ।
हँसती ही रहती हर दम ,
अपने अश्रु स्वेद पीकर ।
वात्सल्य मयी मूरत ममता की,
सो जाती रातों को पानी पीकर ।
खोती अपने सपनो को ,
लोरी संग सपने देकर ।
सोई नही कितनी रातों को ,
वो मुझको थपकी देकर ।
चुनकर लाती फूलों को ,
कांटो पर वो चलकर ।
रहे सदा ही पथ रोशन ,
उजियारे खोती उजियारे देकर ।
देती शीतल छाया आँचल की ,
खुद अपनी छाया खोकर ।
स्तब्ध निगाहें भर आतीं ,
देखे जो हल्की सी ठोकर ।
हँसती ही रहती हरदम वो,
चुपके से रातों में रो कर ।
बहती हर पल सरिता सी ,
ममता की सरिता बनकर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
चलती वो अँधियारों संग ,
अपने अँधियारे लेकर ।
चलती अथक भाव से ,
उजियारों की ख़ातिर ,
उजियारों से लड़कर ।
पिसती ज़ीवन की ख़ातिर ,
ज़ीवन में खुद घिसकर ।
हँसती ही रहती हर दम ,
अपने अश्रु स्वेद पीकर ।
वात्सल्य मयी मूरत ममता की,
सो जाती रातों को पानी पीकर ।
खोती अपने सपनो को ,
लोरी संग सपने देकर ।
सोई नही कितनी रातों को ,
वो मुझको थपकी देकर ।
चुनकर लाती फूलों को ,
कांटो पर वो चलकर ।
रहे सदा ही पथ रोशन ,
उजियारे खोती उजियारे देकर ।
देती शीतल छाया आँचल की ,
खुद अपनी छाया खोकर ।
स्तब्ध निगाहें भर आतीं ,
देखे जो हल्की सी ठोकर ।
हँसती ही रहती हरदम वो,
चुपके से रातों में रो कर ।
बहती हर पल सरिता सी ,
ममता की सरिता बनकर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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