शनिवार, 21 अप्रैल 2018

वात्सल्य माँ का

..... वात्सल्य माँ का ...

चलती वो अँधियारों संग ,
 अपने अँधियारे लेकर ।

 चलती अथक भाव से ,
  उजियारों की ख़ातिर ,
 उजियारों से लड़कर ।

  पिसती ज़ीवन की ख़ातिर ,
   ज़ीवन में खुद घिसकर ।

  हँसती ही रहती हर दम ,
  अपने अश्रु स्वेद पीकर ।

  वात्सल्य मयी मूरत ममता की,
  सो जाती रातों को पानी पीकर ।

 खोती अपने सपनो को ,
 लोरी संग सपने देकर ।

सोई नही कितनी रातों को ,
 वो मुझको थपकी देकर ।

 चुनकर लाती फूलों को ,
 कांटो पर वो चलकर ।

  रहे  सदा ही पथ रोशन ,
 उजियारे खोती उजियारे देकर ।

 देती शीतल छाया आँचल की ,
 खुद अपनी छाया खोकर ।

 स्तब्ध निगाहें भर आतीं ,
 देखे जो हल्की सी ठोकर ।

 हँसती ही रहती हरदम वो,
 चुपके से रातों में रो कर ।

बहती हर पल सरिता सी ,
ममता की सरिता बनकर ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..




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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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