रविवार, 15 अप्रैल 2018

अजनबी हुआ वो

 अजनबी हुआ वो,
 अपनो के शहर में ।
 बदल गया सा वो ,
 अपनी ही नजर में ।

  कहता था ,लुटा के जमीं ,
 आया हूँ , तेरे शहर में ।
 वो मेरी ही ,जमीं पा गया ,
  मेरे ही शहर में । 

  फ़साने थे उसकी ,
 बदनामियों के बहुत ।
 एक और नज़्म , लिख रहा,
 वो मेरे ही जिकर में ।

  बात इमानियत की ,
 करता था वो हँस कर ,
 आज इमान डोलते है ,
  उसकी हर बह्र में ।

  अंजाम से अपने ,
 वो वे-खबर नही ,
 कल चला जाएगा '
 किसी अगले शहर में ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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