अजनबी हुआ वो,
अपनो के शहर में ।
बदल गया सा वो ,
अपनी ही नजर में ।
कहता था ,लुटा के जमीं ,
आया हूँ , तेरे शहर में ।
वो मेरी ही ,जमीं पा गया ,
मेरे ही शहर में ।
फ़साने थे उसकी ,
बदनामियों के बहुत ।
एक और नज़्म , लिख रहा,
वो मेरे ही जिकर में ।
बात इमानियत की ,
करता था वो हँस कर ,
आज इमान डोलते है ,
उसकी हर बह्र में ।
अंजाम से अपने ,
वो वे-खबर नही ,
कल चला जाएगा '
किसी अगले शहर में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
अपनो के शहर में ।
बदल गया सा वो ,
अपनी ही नजर में ।
कहता था ,लुटा के जमीं ,
आया हूँ , तेरे शहर में ।
वो मेरी ही ,जमीं पा गया ,
मेरे ही शहर में ।
फ़साने थे उसकी ,
बदनामियों के बहुत ।
एक और नज़्म , लिख रहा,
वो मेरे ही जिकर में ।
बात इमानियत की ,
करता था वो हँस कर ,
आज इमान डोलते है ,
उसकी हर बह्र में ।
अंजाम से अपने ,
वो वे-खबर नही ,
कल चला जाएगा '
किसी अगले शहर में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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