बुधवार, 18 अप्रैल 2018

शेर 89 से 103


89
शेर ज़िंदगी ऐ दख़ल होते रहे ।
लफ्ज़ लफ्ज़ ग़जल होते रहे ।
...90
मस्त है ज़िंदगी पस्त है ज़िंदगी ।
 अक्षर अक्षर बिखरी है ज़िंदगी ।
....91
रहा गाफ़िल ज़िंदगी के इख़्तियार में ।
 ले डूबी मौत इंसा को अपने प्यार में ।
.....92
इस सच को मान न मानो अपनी हार ।
 यह जोश ज़िंदगी का ही दौलत अपार ।
...93
  टूटता रहा ऐतबार ऐतबार से ।
  लड़ता रहा   यूँ इख़्तियार से ।
...94
   मुस्कुरा ऐतबार इजहार किया उसने ।
   लगा ठहाका बे-ऐतबार किया उसने ।

 .... विवेक दुबे"निश्चल"@....
  18/4/18
डायरी 3
 .95
ज़िंदगी भी , एक किताब है ।
   दो लाइन का, बस हिसाब है ।
...96
कुछ लिखें अपना , कुछ कहें अपना।
 सत्य नही ज़ीवन , ज़ीवन एक सपना।
...97
   ज़ीवन की बस , इतनी परिभाषा है। 
    ज़ीवन तो बस , कटता ही जाता है। 
....98
पतझड़ नही वसंत हो ज़िंदगी ।
 अन्त नही आरम्भ हो ज़िंदगी ।
---99
लाभ हानि के खाते , लिखते सब ।
 लोग नही मिलते ,  बे-मतलब अब ।
---100
होता रहता हरदम , कुछ न कुछ।
 वक़्त सीखाता हरदम , कुछ न कुछ।
---101
यह सफर विकल्प से , संकल्प तक का ।
 लगता सारा जीवन , सफर दो पग का।
..102
तपता रहा उम्र भर , कुंदन सा हो गया ।
 भाया न दुनियाँ को , खुद भी खो गया ।
..103
पथिक थक जाएगा ,मंजिल पा जाएगा ।
 छोड़े पद चिन्हों का,इतिहास बनाएगा ।
....
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
29/3/18
डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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