89
शेर ज़िंदगी ऐ दख़ल होते रहे ।
लफ्ज़ लफ्ज़ ग़जल होते रहे ।
...90
मस्त है ज़िंदगी पस्त है ज़िंदगी ।
अक्षर अक्षर बिखरी है ज़िंदगी ।
....91
रहा गाफ़िल ज़िंदगी के इख़्तियार में ।
ले डूबी मौत इंसा को अपने प्यार में ।
.....92
इस सच को मान न मानो अपनी हार ।
यह जोश ज़िंदगी का ही दौलत अपार ।
...93
टूटता रहा ऐतबार ऐतबार से ।
लड़ता रहा यूँ इख़्तियार से ।
...94
मुस्कुरा ऐतबार इजहार किया उसने ।
लगा ठहाका बे-ऐतबार किया उसने ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
18/4/18
डायरी 3
.95
ज़िंदगी भी , एक किताब है ।
दो लाइन का, बस हिसाब है ।
...96
कुछ लिखें अपना , कुछ कहें अपना।
सत्य नही ज़ीवन , ज़ीवन एक सपना।
...97
ज़ीवन की बस , इतनी परिभाषा है।
ज़ीवन तो बस , कटता ही जाता है।
....98
पतझड़ नही वसंत हो ज़िंदगी ।
अन्त नही आरम्भ हो ज़िंदगी ।
---99
लाभ हानि के खाते , लिखते सब ।
लोग नही मिलते , बे-मतलब अब ।
---100
होता रहता हरदम , कुछ न कुछ।
वक़्त सीखाता हरदम , कुछ न कुछ।
---101
यह सफर विकल्प से , संकल्प तक का ।
लगता सारा जीवन , सफर दो पग का।
..102
तपता रहा उम्र भर , कुंदन सा हो गया ।
भाया न दुनियाँ को , खुद भी खो गया ।
..103
पथिक थक जाएगा ,मंजिल पा जाएगा ।
छोड़े पद चिन्हों का,इतिहास बनाएगा ।
....
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
29/3/18
डायरी 3
शेर ज़िंदगी ऐ दख़ल होते रहे ।
लफ्ज़ लफ्ज़ ग़जल होते रहे ।
...90
मस्त है ज़िंदगी पस्त है ज़िंदगी ।
अक्षर अक्षर बिखरी है ज़िंदगी ।
....91
रहा गाफ़िल ज़िंदगी के इख़्तियार में ।
ले डूबी मौत इंसा को अपने प्यार में ।
.....92
इस सच को मान न मानो अपनी हार ।
यह जोश ज़िंदगी का ही दौलत अपार ।
...93
टूटता रहा ऐतबार ऐतबार से ।
लड़ता रहा यूँ इख़्तियार से ।
...94
मुस्कुरा ऐतबार इजहार किया उसने ।
लगा ठहाका बे-ऐतबार किया उसने ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
18/4/18
डायरी 3
.95
ज़िंदगी भी , एक किताब है ।
दो लाइन का, बस हिसाब है ।
...96
कुछ लिखें अपना , कुछ कहें अपना।
सत्य नही ज़ीवन , ज़ीवन एक सपना।
...97
ज़ीवन की बस , इतनी परिभाषा है।
ज़ीवन तो बस , कटता ही जाता है।
....98
पतझड़ नही वसंत हो ज़िंदगी ।
अन्त नही आरम्भ हो ज़िंदगी ।
---99
लाभ हानि के खाते , लिखते सब ।
लोग नही मिलते , बे-मतलब अब ।
---100
होता रहता हरदम , कुछ न कुछ।
वक़्त सीखाता हरदम , कुछ न कुछ।
---101
यह सफर विकल्प से , संकल्प तक का ।
लगता सारा जीवन , सफर दो पग का।
..102
तपता रहा उम्र भर , कुंदन सा हो गया ।
भाया न दुनियाँ को , खुद भी खो गया ।
..103
पथिक थक जाएगा ,मंजिल पा जाएगा ।
छोड़े पद चिन्हों का,इतिहास बनाएगा ।
....
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
29/3/18
डायरी 3
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें