कुछ डायरियां यहाँ ।
कुछ डायरियां वहाँ ।
लिख गया हर पल को ,
जीवन जाने कहाँ कहाँ ।
झड़ता पत्ता पतझड़ का ,
रौंदता जिसे सारा जहां ।
कभी एक मिसाल जो ,
था वट वृक्ष विशाल वो ।
रूठती है जब धरा ,
सूखता खड़ा खड़ा ।
छोड़तीं जड़ें उसे ,
घेरती जरा, ज़रा ।
धरा पर धरा जो ,
हुआ यूं कंगाल वो ।
कुछ डायरियां यहाँ ।
कुछ डायरियां वहाँ ।
"विवेक" लिख गया हर पल को .....
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
कुछ डायरियां वहाँ ।
लिख गया हर पल को ,
जीवन जाने कहाँ कहाँ ।
झड़ता पत्ता पतझड़ का ,
रौंदता जिसे सारा जहां ।
कभी एक मिसाल जो ,
था वट वृक्ष विशाल वो ।
रूठती है जब धरा ,
सूखता खड़ा खड़ा ।
छोड़तीं जड़ें उसे ,
घेरती जरा, ज़रा ।
धरा पर धरा जो ,
हुआ यूं कंगाल वो ।
कुछ डायरियां यहाँ ।
कुछ डायरियां वहाँ ।
"विवेक" लिख गया हर पल को .....
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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