शनिवार, 21 अप्रैल 2018

कुछ डायरियां

कुछ डायरियां यहाँ ।
 कुछ डायरियां वहाँ ।

   लिख गया हर पल को ,
   जीवन जाने कहाँ कहाँ ।

झड़ता पत्ता पतझड़ का ,
 रौंदता जिसे सारा जहां ।

 कभी एक मिसाल जो ,
 था वट वृक्ष विशाल वो ।

     रूठती है जब धरा ,
     सूखता खड़ा खड़ा ।

छोड़तीं जड़ें उसे ,
 घेरती जरा,  ज़रा ।

           धरा पर    धरा जो ,
           हुआ यूं कंगाल वो ।

कुछ डायरियां यहाँ  ।
 कुछ डायरियां वहाँ ।

  "विवेक" लिख गया हर पल को .....

   .... विवेक दुबे"निश्चल"@..



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