शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

मुक्तक कुछ ख्याल 9


खर्च का हिसाब न रहा ।
 तेरा इतना इख़्तियार रहा ।
 सम्हालता रहा लम्हा लम्हा ,
 बे-इन्तेहाँ जो इंतज़ार रहा ।
..
मिटा कर मुझे मेरे वजूद से।
 देखते है मुझे बड़े ख़ुसूस से।
 उजड़ा चमन अपने अंदाज से,
देखते बागवां को क्यों क़ुसूर से ।
..... 
तेरी बेगुनाही से क्या फर्क पड़ता है ।
 सुबूत ही हर गुनाह को गढ़ता है ।
 बजह तलाश करो बेगुनाही की ,
 ग़ुनाह करने से फर्क़ नही पड़ता है ।

 ..... विवेक दुबे "निश्चल"©..
Blog post 12/2/18
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