रविवार, 15 अप्रैल 2018

जोगी भोगी सभी लुटेरे

जोगी भोगी सभी लुटेरे यौवन के ,
 प्यासे है यह बस नारी तन के ।

   हो रहे पशुओं से बदत्तर ,
   हत्यारे यह बचपन तन के ।

  मरण सरल हुआ नारी का  ,
  प्रश्न कठिन नारी ज़ीवन के ।

  चीख रही है विलख रही है ,
  चुभते शूल जिसके तन मन मे ।

   निग़ाह गढ़ि हर हवसी की ,
    बस नारी योवन तन में । 
  
 वैर पालते जो खुद आपस में ,
  टुकड़े करते नारी तन मन के  ।

   लुटती ही नारी आखिर क्यों ,
   उस युग से लेकर इस युग में ।

  पर सहज रही है नारी भी क्यों ,
  हम सब को आते जाते हर युग में ।

  शायद समझ सका न स्वार्थ पुरुष का,
  नारी मन को उस युग में  इस युग में ।

   .... विवेक दुबे"निश्चल"@..

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...