जोगी भोगी सभी लुटेरे यौवन के ,
प्यासे है यह बस नारी तन के ।
हो रहे पशुओं से बदत्तर ,
हत्यारे यह बचपन तन के ।
मरण सरल हुआ नारी का ,
प्रश्न कठिन नारी ज़ीवन के ।
चीख रही है विलख रही है ,
चुभते शूल जिसके तन मन मे ।
निग़ाह गढ़ि हर हवसी की ,
बस नारी योवन तन में ।
वैर पालते जो खुद आपस में ,
टुकड़े करते नारी तन मन के ।
लुटती ही नारी आखिर क्यों ,
उस युग से लेकर इस युग में ।
पर सहज रही है नारी भी क्यों ,
हम सब को आते जाते हर युग में ।
शायद समझ सका न स्वार्थ पुरुष का,
नारी मन को उस युग में इस युग में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
प्यासे है यह बस नारी तन के ।
हो रहे पशुओं से बदत्तर ,
हत्यारे यह बचपन तन के ।
मरण सरल हुआ नारी का ,
प्रश्न कठिन नारी ज़ीवन के ।
चीख रही है विलख रही है ,
चुभते शूल जिसके तन मन मे ।
निग़ाह गढ़ि हर हवसी की ,
बस नारी योवन तन में ।
वैर पालते जो खुद आपस में ,
टुकड़े करते नारी तन मन के ।
लुटती ही नारी आखिर क्यों ,
उस युग से लेकर इस युग में ।
पर सहज रही है नारी भी क्यों ,
हम सब को आते जाते हर युग में ।
शायद समझ सका न स्वार्थ पुरुष का,
नारी मन को उस युग में इस युग में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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