डरती हूँ मैं अँधियारों में ,
इन उजले सैय्यदों से ।
लूट रहे जो कदम कदम ,
अपने नापाक इरादों से ।
बातें करते बड़ी बड़ी बयानों में ,
मुझ पर छा जाते वो हैवानों से ।
धर्म ध्वजा लगीं जहां ,
लुटती हूँ उन दलहानो में ।
बेटी सी हूँ मैं जिनकी ,
महफूज नही उन हाथों में ।
घोंट रहे गला सभी मिलकर ,
मिलते आन अँधेरे तैखानो में ।
हवस ही सज़दा पूजा इनकी ,
डरते नही ये खुदा भगवानों से ।
इस जीने से तो अच्छा है ,
दफ़न रहूँ में गर्भ के वीरानों में ।
डरती हूँ अँधियारों में ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
इन उजले सैय्यदों से ।
लूट रहे जो कदम कदम ,
अपने नापाक इरादों से ।
बातें करते बड़ी बड़ी बयानों में ,
मुझ पर छा जाते वो हैवानों से ।
धर्म ध्वजा लगीं जहां ,
लुटती हूँ उन दलहानो में ।
बेटी सी हूँ मैं जिनकी ,
महफूज नही उन हाथों में ।
घोंट रहे गला सभी मिलकर ,
मिलते आन अँधेरे तैखानो में ।
हवस ही सज़दा पूजा इनकी ,
डरते नही ये खुदा भगवानों से ।
इस जीने से तो अच्छा है ,
दफ़न रहूँ में गर्भ के वीरानों में ।
डरती हूँ अँधियारों में ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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