बून्द पड़ी वो अम्बर से ,
धरती के सूखे दामन में ।
चहक उठी कोयल जैसे ,
अमराई के मौसम में ।
.
मिलतीं जैसे अपने साजन से ,
घुलतीं बूंदे तप्त धरा तन में ।
रीत रहा है अंबर धीरे धीरे ,
खोकर अवनि के तन में ।
.
सहज रही है उर्वी जल कण ,
अपने फैले प्यासे आँचल में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 1
धरती के सूखे दामन में ।
चहक उठी कोयल जैसे ,
अमराई के मौसम में ।
.
मिलतीं जैसे अपने साजन से ,
घुलतीं बूंदे तप्त धरा तन में ।
रीत रहा है अंबर धीरे धीरे ,
खोकर अवनि के तन में ।
.
सहज रही है उर्वी जल कण ,
अपने फैले प्यासे आँचल में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 1
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें