1...
अतृप्ति यह भावों की ।
संतृप्ति यह हालतों की ।
आदि अनादि की परिधि से,
सृष्टि चलती विस्तारों की ।
.2..
जिव्हा शब्द से लद जाती है।
मीठे कड़वे से फल लाती है ।
सींच रहे है हम जिन भावों से ,
मन की माटी फ़सल उगाती है ।
3.
शब्द सरोवर हो जाते हैं ।
सारंग नयन खिल जाते हैं ।
तुहिन कण बिखेर भावों के ,
अर्थ कमल दल खिल जाते हैं ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.
रायसेन(म.प्र.)
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