शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

मुक्तक कुछ ख्याल 2


1...
  अतृप्ति यह भावों की ।
 संतृप्ति यह हालतों की ।
 आदि अनादि की परिधि से,
  सृष्टि चलती विस्तारों की ।

  .2..

जिव्हा शब्द से लद जाती है।
  मीठे कड़वे से फल लाती है ।
  सींच रहे है हम जिन भावों से ,
  मन की माटी फ़सल उगाती है ।
3.

      शब्द सरोवर हो जाते हैं ।
       सारंग नयन खिल जाते हैं ।
      तुहिन कण बिखेर भावों के  ,
      अर्थ कमल दल खिल जाते हैं ।
    .... विवेक दुबे"निश्चल"@.
        रायसेन(म.प्र.)



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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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