शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

मुक्तक कुछ ख्याल 4

जलती रेत झुलसते पत्थर ,
          नीर उबलता सागर का ।
 प्यासा है टुकड़ा भी अब ,
         देखो सावन के बादल का ।
      .... विवेक दुबे"निश्चल"@.....

लोग निग़ाह तोलते थे ।
         वो पत्थर भी बोलते थे ।
 चले न कभी साथ मेरे ,
          क्यों मेरे राज खोलते थे । 
 .... 
वहम सा पाला मुझको ।
       निगाहों में ढाला मुझको ।
 अपनों की महफ़िल में ,
         गैर बता डाला मुझको ।
.... 
दवा वो दर्द हो गया ।
          इश्क़ रुस्वा हो गया ।
 दुआएँ भी काम न आई ,
        फ़र्ज़ उसका अदा हो गया।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..


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