होने को बहुत कुछ होता है ।
जो दिखता वो कहाँ होता है ।
छला जाता जन हर बार ही ,
जो होता है वो कहाँ होता है ।
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वो मरहम लगाने आए हैं ।
ज़ख्म कुदेरने आए हैं ।
भीड़ है गाँव मे बहुत मेरे ,
फिर चुनाव के जमाने आए हैं ।
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चलते चालें कुटिल नीत की ,
कलजुग का प्रताप निराला ।
चारों ओर जयकारे उनके ,
हाथों में फरेब का प्याला ।
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चुप रहो ख़ामोश रहो ।
दोषी को निर्दोष कहो ।
असत्य सत्य जो जाए ,
सत्य कैसे तब सिद्ध करो ।
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जुर्म व्यापार हुआ ।
फ़र्ज़ दाग़दार हुआ ।
बैठा हुआ सड़क पर,
ईमान जार जार हुआ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3
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