जलती रेत झुलसते पत्थर ,
नीर उबलता सागर का ।
प्यासा है टुकड़ा भी अब ,
देखो सावन के बादल का ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
लोग निग़ाह तोलते थे ।
वो पत्थर भी बोलते थे ।
चले न कभी साथ मेरे ,
क्यों मेरे राज खोलते थे ।
....
वहम सा पाला मुझको ।
निगाहों में ढाला मुझको ।
अपनों की महफ़िल में ,
गैर बता डाला मुझको ।
....
दवा वो दर्द हो गया ।
इश्क़ रुस्वा हो गया ।
दुआएँ भी काम न आई ,
फ़र्ज़ उसका अदा हो गया।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
नीर उबलता सागर का ।
प्यासा है टुकड़ा भी अब ,
देखो सावन के बादल का ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
लोग निग़ाह तोलते थे ।
वो पत्थर भी बोलते थे ।
चले न कभी साथ मेरे ,
क्यों मेरे राज खोलते थे ।
....
वहम सा पाला मुझको ।
निगाहों में ढाला मुझको ।
अपनों की महफ़िल में ,
गैर बता डाला मुझको ।
....
दवा वो दर्द हो गया ।
इश्क़ रुस्वा हो गया ।
दुआएँ भी काम न आई ,
फ़र्ज़ उसका अदा हो गया।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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