न जाने कैसा वक़्त हो गया ।
हर जुमला जात पे ठहर गया ।
जंग ज़ुबानी तलवारों से पैनी ,
चुनाव मैदान-ऐ-जंग हो गया ।
हो रहीं पार हदें आज सारी ,
जुमला विकास कही खो गया ।
भूख है सत्ता की बड़ी भारी ,
भूखा तो भूखा ही सो गया ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
हर जुमला जात पे ठहर गया ।
जंग ज़ुबानी तलवारों से पैनी ,
चुनाव मैदान-ऐ-जंग हो गया ।
हो रहीं पार हदें आज सारी ,
जुमला विकास कही खो गया ।
भूख है सत्ता की बड़ी भारी ,
भूखा तो भूखा ही सो गया ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें