पाकर कुछ खोया मैंने ।
खोकर कुछ पाया मैंने ।
अपनो की ही ख़ातिर ,
अपनो को गैर बताया मैंने ।
हार गया जाने क्यों फिर भी ,
अपनो को जीत न पाया मैंने ।
दूर रहा हर दम क्यों मैं उनसे ,
जिनको अपने पास में पाया मैंने ।
सौंप दिया पल प्रति पल जिनको ,
उनसे से ही क्यों छल पाया मैंने ।
छल गए बही सहजता से ,
जिनको निष्छल पाया मैंने ।
चलता रहा मैं संग उनके ,
खुद को "निश्चल" पाया मैंने ।
जीत रहा हूँ खुद को ही खुद ,
अपनो को जीत न पाया मैंने ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
खोकर कुछ पाया मैंने ।
अपनो की ही ख़ातिर ,
अपनो को गैर बताया मैंने ।
हार गया जाने क्यों फिर भी ,
अपनो को जीत न पाया मैंने ।
दूर रहा हर दम क्यों मैं उनसे ,
जिनको अपने पास में पाया मैंने ।
सौंप दिया पल प्रति पल जिनको ,
उनसे से ही क्यों छल पाया मैंने ।
छल गए बही सहजता से ,
जिनको निष्छल पाया मैंने ।
चलता रहा मैं संग उनके ,
खुद को "निश्चल" पाया मैंने ।
जीत रहा हूँ खुद को ही खुद ,
अपनो को जीत न पाया मैंने ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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