बुधवार, 18 अप्रैल 2018

खुद को निश्चल पाया मैंने

पाकर कुछ खोया मैंने ।
 खोकर कुछ पाया मैंने ।

 अपनो की ही ख़ातिर ,
 अपनो को गैर बताया मैंने ।

  हार गया जाने क्यों फिर भी ,
  अपनो को जीत न पाया मैंने ।

  दूर रहा हर दम क्यों मैं उनसे ,
 जिनको अपने पास में पाया मैंने ।

 सौंप दिया पल प्रति पल जिनको ,
  उनसे से ही क्यों छल पाया मैंने ।

  छल गए बही सहजता से ,
 जिनको निष्छल पाया मैंने ।

  चलता रहा मैं संग उनके ,
 खुद को "निश्चल" पाया मैंने ।

  जीत रहा हूँ खुद को ही खुद ,
 अपनो को जीत न पाया मैंने ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@....

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