दिल-ऐ-कुसूर न था ।
निग़ाह-ऐ-सुरूर न था ।
दुआओं में साथ हूँ जिसकी ,
वा-ख़ुदा वो गैर न था ।
....
कुछ हम यूँ उनके हवाले रहे ।
निग़ाह नुक़्स निकाले न गए ।
दुआओं के असर उस नज़्र में ,
इल्म ताबीज़ गले डाले न गए ।
.......
बात एक यही चुभती रही ।
निग़ाह एक वो झुकती रही ।
तपिश न थी शबनम में कोई ,
पर रात भर वो घुलती रही ।
....
भरते रहे अश्क़ निग़ाह मचल दामन के ,
हौंसला दामन का यह कैसा इम्तहान था ।
रंजिश न थी कोई सितारों से आसमाँ की ,
पर सितारों को क्यूँ चाँद का गुमान था ।
....
कितनी ख़ुशी है दुनियाँ में ।
तू डूब तो सही दुनियाँ में ।
न खटक किसी निग़ाह में ।
जज़्ब हो तो दिल दुनियाँ में ।
....
सिखाता रहा वो इश्क़ मुझे बार बार ।
गिरता रहा मैं इश्क़ राह बार बार ।
टूटता न था दिल उस संग की चोट से ,
होता रहा अपनी निग़ाह से जार जार ।
....
जागती आँखों से ख़्वाब देखता हूँ ।
ऐ चाँद मैं तुझे बे-हिसाब देखता हूँ ।
उतरता नही तू क्यों जमीं पर कभी,
तुझे निग़ाह-ऐ-आस- पास देखता हूँ ।
...
निग़ाह उठी इस आशा से ।
देखे अंबर अभिलाषा से ।
कुछ पूछ रही धरती जैसे ,
अपनी प्रणय पिपासा से ।
..... विवेक दुबे©...
निग़ाह-ऐ-सुरूर न था ।
दुआओं में साथ हूँ जिसकी ,
वा-ख़ुदा वो गैर न था ।
....
कुछ हम यूँ उनके हवाले रहे ।
निग़ाह नुक़्स निकाले न गए ।
दुआओं के असर उस नज़्र में ,
इल्म ताबीज़ गले डाले न गए ।
.......
बात एक यही चुभती रही ।
निग़ाह एक वो झुकती रही ।
तपिश न थी शबनम में कोई ,
पर रात भर वो घुलती रही ।
....
भरते रहे अश्क़ निग़ाह मचल दामन के ,
हौंसला दामन का यह कैसा इम्तहान था ।
रंजिश न थी कोई सितारों से आसमाँ की ,
पर सितारों को क्यूँ चाँद का गुमान था ।
....
कितनी ख़ुशी है दुनियाँ में ।
तू डूब तो सही दुनियाँ में ।
न खटक किसी निग़ाह में ।
जज़्ब हो तो दिल दुनियाँ में ।
....
सिखाता रहा वो इश्क़ मुझे बार बार ।
गिरता रहा मैं इश्क़ राह बार बार ।
टूटता न था दिल उस संग की चोट से ,
होता रहा अपनी निग़ाह से जार जार ।
....
जागती आँखों से ख़्वाब देखता हूँ ।
ऐ चाँद मैं तुझे बे-हिसाब देखता हूँ ।
उतरता नही तू क्यों जमीं पर कभी,
तुझे निग़ाह-ऐ-आस- पास देखता हूँ ।
...
निग़ाह उठी इस आशा से ।
देखे अंबर अभिलाषा से ।
कुछ पूछ रही धरती जैसे ,
अपनी प्रणय पिपासा से ।
..... विवेक दुबे©...
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